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Sunday, August 1, 2010

नाम की नदी

सभी पुकारते हैं उसे
नदी के नाम से
पर बिना जल के भी
कोई नदी होती है भला.

कभी रही होगी वह 
एक जीवंत नदी
आकाश की नीलिमा को
अपने आलिंगन में समेटे
कलकल करते जल से भरपूर.
तभी हुआ होगा इसका नामकरण

समय की धार के साथ
बहते-बहते वाष्पित हो गया
नदी का जल .
और बादलों ने भी
कर लिया नदी से किनारा
सभी ने भुला दिया नदी को
बस  नाम चलता रहा.
अपनों की बेरुखी देख
सूख गई नदी .

अब नदी कहीं नहीं
केवल नाम भर  है
जिसमे बहता है
 पाखण्ड, धर्मान्धता और स्वार्थ का
हाहाकारी जल . 

4 comments:

Sunil Kumar said...

अब नदी कहीं नहीं
केवल नाम भर है
जिसमे बहता है
पाखण्ड, धर्मान्धता और स्वार्थ का
हाहाकारी जल . सुंदर अतिसुन्दर बधाई

मेरे भाव said...

अब नदी कहीं नहीं
केवल नाम भर है
जिसमे बहता है
पाखण्ड, धर्मान्धता और स्वार्थ का
हाहाकारी जल . ...... aaj nadi sabhyata aur sanskriti ka pratik nahi rah gai hai. nadi ke sukhte pani ki tarah mulyon ka bhi patan ho raha hai

अरुण चन्द्र रॉय said...

"नाम की नदी "
अभी कुछ दिन पहले मैं जबलपुर गया था और वहां नर्मदा तट पर भेडा घाट है... वहां लोगों ने बताया की कुछ वर्ष पूरब तक बरसात के दिनों में पानी घात तक आ जाता था . ..लेकिन नर्मदा पर बाँध बन जाने के बाद .. नर्मदा में पानी या तो नहीं रहता या बाढ़ ही आती है ... मैं किस नर्मदा को देखने गया था और क्या देख कर लौटा.. बहुत दुखी था.. अंदर ए़क पीड़ा थी... लिखना भी कुछ शुरू किया था... लेकिन पूरा नहीं कर पाया... आपकी यह कविता पढने के बाद उसे लिखने की जरुरत नहीं है... नदिया अब नाम की ही रह जायंगी... और आपकी कविता का शीर्षक ही अपने आप में कविता है ...

समय की धार के साथ
बहते-बहते वाष्पित हो गया
नदी का जल .
और बादलों ने भी
कर लिया नदी से किनारा
सभी ने भुला दिया नदी को
बस नाम चलता रहा.
अपनों की बेरुखी देख
सूख गई नदी .

बहुत सुंदर पर्सोनिफिकेसन किया है आपने नदी का जीवन के सामानांतर ...
अब नदी कहीं नहीं
केवल नाम भर है
जिसमे बहता है
पाखण्ड, धर्मान्धता और स्वार्थ का
हाहाकारी जल .

कविता आपने चरम पर है और लक्ष्य को भी पा रही है अंतिम पंक्तियों में ....

मनोज कुमार said...

कटु यथार्थ का चित्रण।
ये word verification हटा दीजिए।

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