अट्टालिका पर अटका हुआ बयान
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रतन टाटा ने मुकेश अम्बानी की उस शानदार अट्टालिका पर आश्चर्य व्यक्त किया,जिसमें वह सपरिवार रहते हैं और जिसकी कीमत इतनी है कि दस डिजिट के कैल्कुलेटर में भी न समाये.उन्होंने मुकेश अम्बानी को संवेदनशील बनने की सलाह देते हुए कहा कि अकूत धन सम्पदाधारी लोगों को जनसामान्य के जीवन स्तर में सुधार के लिए कुछ न कुछ ज़रूर करना चाहिये.
रतन टाटा बाद में अपने बयान से यह कहते हुए मुकर गए कि उनके कहे को मीडिया ने तोडमरोड कर शरारतपूर्ण अंदाज़ में प्रस्तुत किया है.यही तो त्रासदी है कि जब तक मीडिया इन धन्ना सेठों की खबर मनमाफिक छापता रहे तब तक स्नेह का पात्र और खरी-खरी कह दी तो ताडन की अधिकारी.यह समय ऐसा ही है जहाँ पेशेवर मीडियाकर्मी और लाबियिस्ट की सीमारेखा धुंधला चुकी है.मेरे शहर में तो यह सीमारेखा सिरे से नदारद हुए अरसा हुआ.
रतन टाटा रिटायरमेंट में निहायत करीब हैं.उनके उत्तराधिकारी की खोज जोर-शोर से चल रही है.उनकी अवस्था ही अब ऐसी है जब आदमी स्वत: ही उपदेशक बन जाता है.एक पुरानी कहावत है कि हर आदमी नदी के सुनसान किनारे पर,जलती चिता के करीब और रिटायरमेंट को नज़दीक पा कर दार्शनिक हो जाता है.वह भी इस कहावत का कोई अपवाद नहीं हैं.यकीनन अब उन पर उपदेशक हावी है.पर उनके भीतर का उपदेशक यह भूल गया कि हर कार्य व्यापार के कुछ लिखित और अधिकांश अलिखित नियम होते हैं,जिनका पालन सभी को करना होता है.क्रिकेट का खेल गुल्ली डंडे के नियमों के तहत तो नहीं खेला जा सकता.कारपोरेट जगत में यदि शिखर पर बने रहना है तो अपनी धन सम्पदा का लगातार भव्य प्रदर्शन आवश्यक होता है.अम्बानी की अट्टालिका इसी नियम के तहत उनके वैभव की धवजावाहक है.
मेरे शहर के तमाम टाटाओं,अम्बानियों,लक्ष्मी मित्तलों,बिरलाओं,अज़ीम प्रेमजीयों को भी पता है कि धन सम्पदा का सार्वजानिक प्रदर्शन की क्या अहमियत होती है .विवाह समारोह से लेकर पोते के कर्णछेदन तक,गृह प्रवेश से लेकर पौत्र के नामकरण तक और अपने बर्थडे बैश ,मैरिज अनिवेरसिरी से लेकर घर के किसी बुजुर्ग के गुजर जाने पर आयोजित होने वाले मृत्यु भोज तक पर अपनी सम्पदा की चमक दिखाने का अवसर भला कौन चूकना चाहता है.कभी-कभी तो यह ही नहीं पता चलता कि यह मृत्यु भोज है या किसी पांच सितारा होटल का लंच.सारी व्यवस्था एकदम चाक चौबंद रहती है.वातावरण में किसी अन्य मांगलिक कार्यक्रम जैसा उत्साह.सच तो यह है कि यदि आप संपन्न हैं तो उसकी चकाचौंध सबको दिखनी भी चाहिए. अब जंगल के एकांत में नाचने मोर नहीं,अपनी सरेबाजार नृत्यकला का प्रदर्शन करने का दमखम रखने वाले मोरों की प्रसांगिकता रह गई है.
रतन टाटा अब व्यवसाय की मुख्य धारा से बाहर होने के करीब हैं.उनकी स्थिति अब क्रिकेट के उस भूतपूर्व खिलाड़ी जैसी है जो साइड लाइन पर पर खड़ा रह कर अपने बेतुके से खेल में शामिल खिलाडियों को बेवजह चिढ़ाया करता है.अम्बानी की अट्टालिका पर अटका रतन टाटा का यह बयान उस फटी हुई पतंग जैसा है ,जिसका शायद ही कोई तलबगार हो ,
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रतन टाटा ने मुकेश अम्बानी की उस शानदार अट्टालिका पर आश्चर्य व्यक्त किया,जिसमें वह सपरिवार रहते हैं और जिसकी कीमत इतनी है कि दस डिजिट के कैल्कुलेटर में भी न समाये.उन्होंने मुकेश अम्बानी को संवेदनशील बनने की सलाह देते हुए कहा कि अकूत धन सम्पदाधारी लोगों को जनसामान्य के जीवन स्तर में सुधार के लिए कुछ न कुछ ज़रूर करना चाहिये.
रतन टाटा बाद में अपने बयान से यह कहते हुए मुकर गए कि उनके कहे को मीडिया ने तोडमरोड कर शरारतपूर्ण अंदाज़ में प्रस्तुत किया है.यही तो त्रासदी है कि जब तक मीडिया इन धन्ना सेठों की खबर मनमाफिक छापता रहे तब तक स्नेह का पात्र और खरी-खरी कह दी तो ताडन की अधिकारी.यह समय ऐसा ही है जहाँ पेशेवर मीडियाकर्मी और लाबियिस्ट की सीमारेखा धुंधला चुकी है.मेरे शहर में तो यह सीमारेखा सिरे से नदारद हुए अरसा हुआ.
रतन टाटा रिटायरमेंट में निहायत करीब हैं.उनके उत्तराधिकारी की खोज जोर-शोर से चल रही है.उनकी अवस्था ही अब ऐसी है जब आदमी स्वत: ही उपदेशक बन जाता है.एक पुरानी कहावत है कि हर आदमी नदी के सुनसान किनारे पर,जलती चिता के करीब और रिटायरमेंट को नज़दीक पा कर दार्शनिक हो जाता है.वह भी इस कहावत का कोई अपवाद नहीं हैं.यकीनन अब उन पर उपदेशक हावी है.पर उनके भीतर का उपदेशक यह भूल गया कि हर कार्य व्यापार के कुछ लिखित और अधिकांश अलिखित नियम होते हैं,जिनका पालन सभी को करना होता है.क्रिकेट का खेल गुल्ली डंडे के नियमों के तहत तो नहीं खेला जा सकता.कारपोरेट जगत में यदि शिखर पर बने रहना है तो अपनी धन सम्पदा का लगातार भव्य प्रदर्शन आवश्यक होता है.अम्बानी की अट्टालिका इसी नियम के तहत उनके वैभव की धवजावाहक है.
मेरे शहर के तमाम टाटाओं,अम्बानियों,लक्ष्मी मित्तलों,बिरलाओं,अज़ीम प्रेमजीयों को भी पता है कि धन सम्पदा का सार्वजानिक प्रदर्शन की क्या अहमियत होती है .विवाह समारोह से लेकर पोते के कर्णछेदन तक,गृह प्रवेश से लेकर पौत्र के नामकरण तक और अपने बर्थडे बैश ,मैरिज अनिवेरसिरी से लेकर घर के किसी बुजुर्ग के गुजर जाने पर आयोजित होने वाले मृत्यु भोज तक पर अपनी सम्पदा की चमक दिखाने का अवसर भला कौन चूकना चाहता है.कभी-कभी तो यह ही नहीं पता चलता कि यह मृत्यु भोज है या किसी पांच सितारा होटल का लंच.सारी व्यवस्था एकदम चाक चौबंद रहती है.वातावरण में किसी अन्य मांगलिक कार्यक्रम जैसा उत्साह.सच तो यह है कि यदि आप संपन्न हैं तो उसकी चकाचौंध सबको दिखनी भी चाहिए. अब जंगल के एकांत में नाचने मोर नहीं,अपनी सरेबाजार नृत्यकला का प्रदर्शन करने का दमखम रखने वाले मोरों की प्रसांगिकता रह गई है.
रतन टाटा अब व्यवसाय की मुख्य धारा से बाहर होने के करीब हैं.उनकी स्थिति अब क्रिकेट के उस भूतपूर्व खिलाड़ी जैसी है जो साइड लाइन पर पर खड़ा रह कर अपने बेतुके से खेल में शामिल खिलाडियों को बेवजह चिढ़ाया करता है.अम्बानी की अट्टालिका पर अटका रतन टाटा का यह बयान उस फटी हुई पतंग जैसा है ,जिसका शायद ही कोई तलबगार हो ,
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