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Friday, August 12, 2011

एक अनंत पाप कथा

एक अनंत पाप कथा
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लुगदी साहित्य के लिए विख्यात (या कुख्यात )इस शहर में अनेक ऐसे छदम् नाम (कुछ स्वनामधन्य लेखक) हुए ,जिन्होंने तंत्र- मन्त्र ;जादू टोने को आधार बना कर समय -समय पर ग्रंथों की रचना की और नाम व दाम दोनों अर्जित किये.लेकिन मैं जिस लोमहर्षक कथा को वर्क दर वर्क बांचने जा रहा हूँ उसमें रहस्य और रोमांच तो है पर वह दिलचस्प कतई नहीं है.ये धर्म या मज़हब की उन पेचीदा गलियों का पता देती है जो अतृप्त अभिलाषाओं की पूर्ति ,बिना श्रम के गंतव्य को पा लेने की बेहूदा जिद और निठल्लेपन को चमत्कार के जरिये महिमामंडित करने का शार्टकट उपलब्ध कराने के लिए अविष्कृत की गई हैं.यहाँ मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि इन गलियों का धर्म या मज़हब के मूल मंतव्य से कुछ भी लेना -देना नहीं है.इसके बावजूद इन गलियों का निरंतर विस्तार पाता अस्तित्व इस बात की निशानदेही करता है कि हमने अब प्रतिकार करने की इच्छा शक्ति को गँवा दिया है.हमने धर्म और उससे से जुड़े हर मसले को उनके स्वयंभू ठेकेदारों के रहमोकरम पर छोड़ दिया है.वरना क्या वजह है कि हर गली कूंचे में तांत्रिक, जादू टोने के माहिर और तमाम गुप्त विद्याओं के बाबा ,अर्ध्प्रभु ,प्रभु ,महाप्रभु ,सूफी ,नजूमी बकायदा अपनी दुकानें बिछाए बैठे हैं और उनके विरोध में उठता हुई एक मद्धम -सी ध्वनि तक सुनाई नहीं देती.
मैंने बताता चलूँ कि यह कहानी जागृति विहार के एक मकान में हुई नरबली की भयावह घटना से शुरू होती है.इस कथित घटना में एक किशोर को नाहक ही अपने प्राण गवाने पड़े.इस कहानी में मृतक केवल एक आब्जेक्ट बना ,जिसे किसी निरीह उल्लू कछुए मुर्गे या बकरे की तरह इस्तेमाल किया गया.उस मासूम को इतनी दर्दनाक मौत इसलिए मिली कि एक तांत्रिक अनुष्ठान में नरबलि की ज़रूरत थी.उस अनुष्ठान के लिए जिससे किसी निसंतान को संतान उपलब्ध कराना ,किसी को धनपति को धन कुबेर बनाना अथवा किसी की सत्तासीन होने की अभिलाषा को पूर्ण करना अभीष्ट रहा होगा.इस नृशंस घटना के मुख्य किरदार उस तांत्रिक को क्या इससे अकूत धन सम्पदा या उच्च सामाजिक मान प्रतिष्ठा वाला ओहदा या फिर धर्म के सत्तात्मक गलियारों में अपूर्व आभा मंडल मिलने वाला था ?इस सवाल का जवाब नकारात्मक ही हो सकता है.तब उसने यह सब कर गुजरने के लिए खुद को क्यों और कैसे तैयार किया होगा?
इस तांत्रिक के बारे में जो अस्फुट जानकारियाँ उपलब्ध हो पा रही हैं उससे यही पता चलता है कि वह दो सामानांतर जीवन जी रहा था.एक जीवन था अघोरी या तांत्रिक का और दूसरा आधुनिक जीवन शैली वाले शहरी का.वह अघोरी या तांत्रिक था अपने व्यवसाय की खातिर.लंबे केश, खूब बढ़ी हुई दाढ़ी ,माथे पर लंबा तिलक उसे तांत्रिक के रूप में सामाजिक मान्यता देता था.निजी जीवन में जींस शर्ट और माथे से तिलक नदारद हो जाता था.वह बहरुपिया था और दो प्रकार के जीवन जीने की कला में माहिर.पर क्या वह ऐसा जन्मजात रहा होगा?इसका भी जवाब नकारात्मक ही हो सकता है.एक सभ्रांत परिवार में जन्मा शशिकांत गर्ग भी अन्य युवाओं की तरह ऊर्जा से परिपूर्ण युवक रहा होगा .इसने भी तब कुछ सपने देखे होंगे ,किसी से प्यार किया होगा ,किसी को चाहा होगा ,किसी को सराहा होगा तो किसी के द्वारा सराहा गया होगा ,इसके भी कुछ सपने आँखों में किरच -किरच कर टूटे होंगे ,कुछ साध अधूरी रह गईं होंगी ,किसी गंतव्य के लिए मार्ग अबूझ पहेली बन गया होगा,कुछ महत्वपूर्ण करने की कोशिश में सांस उखड़ गई होगी.संभावनाएं अनन्त हो सकती हैं.पर धर्म के मुख्य मार्ग से जब कोई भटकता है तो तंत्र, मन्त्र ,मरघट की साधना ,नशे की लत वाली अंतरांध गलियों में उनको सुकून मिला करता है.
शशिकांत के अतीत के बारे में जो सूचनाएं उपलब्ध है उससे यही पता चलता है कि पहले वह भक्ति मार्ग पर बढ़ा ,फिर त्रिकालदर्शी माया जाल में उलझा ,इसके बाद मरघटों में मिलने वाली कथित सिद्धियों की ओर आकर्षित हुआ और अंततः घर परिवार मित्र सबंधियों द्वारा तिरस्कृत हो कर तांत्रिक हाट का कुशल व्यवसायी बन गया.पर उसकी जद्दोजेहद जारी रही.वह अपने बनाये विभ्रम के जाल में उलझता गया.और तंत्र के नाम पर बहुप्रचारित फरेब का खुद शिकार बना जब उसने नरबलि देने का दुस्साहस किया.वह अभी फरार है .देर या सवेर उसका पकड़ा जाना तय है .तब कानून अपना काम करेगा.
हो सकता है शशिकांत को उसके जघन्य कृत्य के लिए फांसी दी जाये.पर क्या तब वास्तव में इस कहानी का पटाक्षेप हो जायेगा.?उस मासूम किशोर की मर्मान्तक चीखों और दर्दनाक मौत की एवज़ में ये सजा काफी होगी ?धर्म की आड़ में चल रहे तंत्र मन्त्र ,जादू टोने आदि इत्यादि और कर्मकांड के नाम चलते ढकोसलों को रोकने के लिए कोई पहल क्यों नहीं की जाती.हम किसका इंतज़ार कर रहे हैं.इन कुप्रथाओं से निजात दिलाने कोई ईश्वर इस धरती पर अवतार लेने वाला नहीं है.
इस कहानी का कोई अंत मेरे पास नहीं है.यह ऐसी अनंत पाप कथा है,जिसमें आप मानें या न मानें पूरे समाज की प्रत्यक्ष या परोक्ष भागीदारी हमेशा रही है .


2 comments:

वाणी गीत said...

हैरानी तब होती है जब अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग भी इनके चंगुल में होते हैं !
वाकई अनंत है ये गाथा !

vijai Rajbali Mathur said...

स्वाधीनता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।

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