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Saturday, October 1, 2011

असत्य के बीच महात्मा गाँधी

अपने जन्मदिन पर महात्मा गाँधी उदास तो बहुत होंगे .६३ पहले नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या इसलिए कर दी थी कि उसे उनके द्वारा किये जाने वाले सत्य के प्रयोगों से घोर असहमति थी .गोडसे पकड़ा गया था और उसे फांसी की सजा भी मिली थी .अपराधी ने अपराध किया ,उसे उसके किये की सजा मिली ,मरने वाला मर गया -बात खत्म हुई .तब से आजतक किसी यह जानने की कोशिश नहीं की कि क्या केवल गोडसे और उसकी रगों में बहता साम्प्रदायिक उन्माद और अपराधिक मानसिकता ही गांधीजी की हत्या के लिए उत्तरदायी थे ?
गोडसे को दण्डित किया जाना तो सांकेतिक था .महात्मा गाँधी का मारा जाना दो संप्रदायों के बीच जबरन खींच दी गई रक्ताभ रेखा की चरम परिणति थी .सत्य के प्रति निष्ठा आदमी को अक्सर उस बंद गली की ओर ले जाती है ,जहाँ ईसा की तरह सूली ,सुकरात की तरह जहर का प्याला ,आत्मघात अथवा पागलखाने की चारदीवारी जैसे सीमित विकल्प ही रह जाते हैं .गोडसे को गले में रस्सी का फन्दा डाल कर मार दिया गया, पर उस मानसिकता को किसने दण्डित किया ,जिनके लिए महात्मा गाँधी की उपस्थिति कष्टप्रद थी .क्या यह सच नहीं है कि उस समय के कुछ महत्वाकांक्षी नागों के लिए वे एक अपरिहार्य लक्ष्य बन गए थे . विषपायी अपने इरादों में कामयाब रहे ,उनके मंसूबे कामयाब हुए और उनकी असलियत भी जगजाहिर नहीं हुई .वे सांप इच्छाधारी थे ,मनचाहा रूप धारण करने में माहिर .इसीलिए वे आज भी जिन्दा हैं .उनकी शिनाख्त कौन करे ?
२ अक्टूबर को महात्मा गाँधी को याद करने की परम्परा है .उनकी प्रतिमाओं पर पुष्पांजली अर्पित करने की एक राष्ट्रव्यापी प्रतिस्पर्धा हर साल होती है .इस उत्सवी माहोल में उनके विचारों की प्रासंगिकता पर कभी कोई चर्चा नहीं करता .उनके जीवन के सन्दर्भ में हमने कुछ तिथियाँ कंटस्थ कर रखी हैं ,उस दिन हम उन्हें पूरी ॠद्धा से याद करते हैं .अपने पूर्वजों को हम कभी विस्मृत नहीं करते .कृतघ्न संतानें भी अपने स्वर्गीय अग्रजों को साल दर साल पूजते हैं .भौतिक शरीर त्याग चुके लोगों को नमन करने में एक सुविधा तो यही रहती है कि वे चुभते हुए सवालों को कभी नहीं उठाते .महात्मा गाँधी राष्ट्रपिता हैं और हमने उनकी तस्वीर करेंसी नोटों और सिक्कों पर छाप कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान ली है .
महात्मा गाँधी की वैचारिक उपस्थिति बाजारवाद पर टिके पूर्ण शासनतंत्र के लिए अत्यंत असुविधाजनक है .उनके विचारों को पचा पाना सरल नहीं है .यही कारण है कि उनके विचारों की हत्या के लिए सत्ता के गलियारों में षड्यंत्र लगातार चलता रहता है .
महात्मा गाँधी यदि आज उदास हैं तो समझ लें ये कोई अच्छी खबर नहीं हैं .उनकी वैचारिक अस्मिता का बचा रहना इस असत्य समय में जिंदा बने रहने की धुंधली ही सही पर एकमात्र आस है .

1 comment:

Patali-The-Village said...

गांघी जी को शत शत नमन|

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