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Friday, October 9, 2009

हैरतंगेज़

हैरतंगेज़
............
सात समन्दरों की
मिथकीय दूरी को लाँघ
एक नाजुक से धागे का
या चावल के चंद दानों
और रोली का
बरस दर बरस
मुझ तक निरापद चला आना
हैरतंगेज़ है !

खून से लबरेज़
बारूद की गंध को
नथुनों में भरे
इस सशंकित सहमी दुनिया में
तेरे नेह का
यथावत बने रहना
हैरतंगेज़ है !

दो संस्कृतियों की
सनातन टकराहट के बीच
सूचना क्रांति के शोरोगुल
और निजत्व के बाज़ार में
मारक प्रतिस्पर्धा के बावजूद
मानवीय संबंधों की उष्मा की
अभिव्यक्ति का
सदियों पुराना दकियानूस तरीका
अभी तक कामयाब है
हैरतंगेज़ है !

तमाम अवरोध हैं फिर भी
कुछ है जो बचा रहता है
किसी पहाडी नदी पर बने
काठ के पुल की तरह
जिस पर से होकर
युग गुजर गए- निर्बाध.

भावनाओं की आवाजाही की तकनीक
अबूझ पहेली है अब तक
हैरतंगेज़ है !.

मेरी बहन !
कोई कहे कुछ भी
तेरे स्नेह -सिक्त
चावल के दानों से
प्रवाहित होती स्नेह की बयार
तेरे भेजे नाजुक से धागे
के जरिये
मेरे मन के अतल गहराइयों में
तिलक बन कर अंकित हो जाना
बरस दर बरस
कम से कम मेरे लिए
कतई हैरतंगेज़ नहीं है.

.निर्मल गुप्त २०८ छीपी टैंक मेरठ -२५०००१
फ़ोन -०९८१८८९१७१८

1 comment:

Travel Trade Service said...

मेरी बहन !
कोई कहे कुछ भी
तेरे स्नेह -सिक्त
चावल के दानों से
प्रवाहित होती स्नेह की बयार
तेरे भेजे नाजुक से धागे
के जरिये
मेरे मन के अतल गहराइयों में
तिलक बन कर अंकित हो जाना
बरस दर बरस
कम से कम मेरे लिए
कतई हैरतंगेज़ नहीं है.!!!!!!!!!!!!!!!!!!सर इस शाब्दिक अभिव्यक्ति से में अभिभूत और भावुक हो उठा हूँ .........बहुत ही अटूट बन्धनों का हैरतंगेज़ शाब्दिक फूलों का गुलदस्ता ...बहुत शुक्रिया सर !!!!!!!!!Nirmal Paneri

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