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Friday, May 13, 2011

मैं शर्मिन्दा नहीं हूँ

मैं शर्मिन्दा नहीं हूँ
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राहुल गाँधी दबे -पांव मुहं अँधेरे ग्रेटर नोयडा के भट्टा परासौल गांव पहुंचे और वहां पहुँच कर उन्होंने जो कुछ देखा ,उसे देख कर उनका भावुक मन कह उठा -मुझे अपने भारतीय होने पर शर्म आ रही है.
                         वह यह बात कह सकते हैं.उनके पास इस बात को कहने के लिए आवश्यक जनादेश,राजनितिक हैसियत,सामजिक स्वीकार्य,हालात का तकाज़ा और मीडिया की चमक मौजूद है.लेकिन एक आम आदमी के पास तो खुद को अपमानित अनुभव करने के बावजूद  उसे अभिव्यक्त करने का नैतिक साहस और सुविधा ही कहाँ है.मैं भी अनेक बार अपमानित हुआ पर शर्मिन्दा कभी नहीं हुआ.मुझे अपनी औकात मालूम है,इसलिए कह सकता हूँ कि मेरी शर्मिंदगी से किसी का कुछ भी बनने या बिगड़ने वाला नहीं है.
                            हकीकत तो यह है कि मेरी शमिंदगी दो कौड़ी की है.उसका कहीं कोई मोल नहीं.मुझे पता है कि रोजमर्रा के जीवन में यदि मेरे संवेदनशील मन ने कभी अपनी शर्मिंदगी का सार्वजानिक रूप से प्रकट करने का दुस्साहस किया तो उसके क्या परिणाम होंगे.तब बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी और हो यह भी सकता है कि शाब्दिक लानत-मलानत शारीरिक दंड में तब्दील हो जाये.इस दर्द को विनायक सेन ने खूब सहा और अनुभव किया है.उनका कसूर भी तो इतना ही था कि गरीब आदिवासियों की दयनीय हालत को देख वह शर्मिन्दा हुए थे और उनसे सहानुभूतिवश उनकी मुफ्त चिकित्सा करने लगे थे.
                                मुझे अच्छी तरह मालूम है कि मेरी शर्म की राजनितिक,सामाजिक या आर्थिक हलकों में कोई मांग नहीं है.आदर्श भूमि घोटाला,टू-जी स्पेट्रम घोटाला ,राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुए महाभ्रष्टाचार के अदि अनादि खुलासों के बाद भी मेरा मन खूब रोया.मैं शर्मिन्दा भी खूब हुआ पर कभी तय नहीं कर पाया कि अपनी इस शर्म को कितनी बेशर्मी के साथ कहाँ ,कब ,कैसे और किस मिकदार में प्रकट करूँ.इसलिए मैं इस शर्म को मन ही मन तो भरपूर और आंशिक रूप से निजी डायरी में अंकित कर के संतुष्ट हो लिया.
                                  वैसे भी एक आदमी के लिए शर्मिंदगी तो उसकी नियति है.यदि आप टू-व्हीलर के रूप में मोटर सायकिल चलाते हैं और दैवयोग से चुस्त-दुरुस्त और युवा भी हैं तो प्रत्येक क्रासिंग,गली ,मोड़,नुक्कड़ पर प्रतिदिन आपको अपमानित होना ही पड़ेगा.मेरे शहर की पुलिसिया सोच यह रही है कि तमाम ज़रायम पेशा लोग जिसमें चेन झपटमार,उच्चके,भाड़े के हत्यारे  नशीली दवाओं के तस्कर और खूंखार आतंकवादी शामिल हैं ,केवल मोटरसाइकिल पर ही सवार रहते हैं.आपके वाहन से सबंधित कागजातों के जाँच  साथ आपकी जामा  तलाशी और शिनाख्ती पड़ताल भी पूरी शिद्दत के साथ होगी .अपनी पहचान और बेगुनाही का सबूत देने की प्रक्रिया के मध्य आप जितना अधिक धैर्य का परिचय देने में कामयाब रहेंगे उतनी ही कम प्रताड़ना के भागी बनेगे.अलबत्ता अर्थबल पीड़ा को काफी हद तक कम कर सकता है.
                                    बात यहीं समाप्त नहीं होती.बैंक हो या बिजली विभाग, स्थानीय निकाय का कोई महकमा हो या राशन कार्ड,वोटर कार्ड बनाने वाला कार्यालय या फिर अन्य कोई दीगर सरकारी -गैर - सरकारी  या अर्धसरकारी प्राधिकरण,आप जहाँ जायेंगे दुत्कारे ज़रूर जायेंगे.बैंक ड्राफ्ट बनवाने के लिए वर्ग पहेली सरीखे फार्म के भरने में ज़रा त्रुटि हुई नहीं कि बैंककर्मी की गुर्राहट आप पर झपटेगी.राशन कार्ड बनवाने के लिए प्रपत्रों में कोई कमी रह गई तो खूंखार शब्दों का पिघला हुआ सीसा आपके कानों में उड़ेल दिया जायेगा.बिजली विभाग नियमित आपूर्ति में चाहे जितनी कोताही करे पर यदि आप अपना बिल या लाइन सुधरवाने की फ़रियाद लेकर गए तो आपको जबरन ४४० वाट के झटके ज़रूर लगेंगे.
                                      यकीन मानें ,मेरे शहर में शर्मिंदगी अनुभव करने की कोई परम्परा नहीं है .राहुल गाँधी बड़े नेता हैं,उनके मुख से निकला देव वाक्य है पर ध्यान रहे देवताओं की केवल भक्ति की जाती है उनकी भाषा -शैली का अक्षरशः अनुसरण घातक हो सकता है.

    

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