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Tuesday, June 7, 2011

जूते से निकली बड़ी खबर


रामलीला ग्राउंड  में आधी रात को हुए  महाभारत के बाद शब्दों के जूते एक दूसरे की ओर भिगो -भिगो कर उछालने का खेल  देश के अधिकांश राजनैतिक दल बड़े मनोयोग से खेल रहे हैं |और बड़े शौक से सारा ज़माना उसे देख रहा है  |आई पी एल और सास बहुओं के अनवरत चलते धारावाहिकों ने हमें बेहतरीन दर्शक बना दिया है |बारात हो या वारदात हमारे लिए तों वह बस एक  तमाशा है|दिल्ली पुलिस रामलीला ग्राउंड में बिना किसी पूर्व सूचना के आधी रात को मारधाड़ का साजोसामान लेकर जब सोते हुए आतताईयों  का मुकाबला करने के लिए अवतरित हुई तों कुछ दिलफुंके आशिक टाइप लोगों को अलावा  सारा आलम गहरी नींद के आगोश में था |इसलिए बहुत से लोग रहस्य और रोमांच के इस रंगारंग  आयोजन का लाइव टेलीकास्ट से वंचित रह गए |जिसका उन्हें बहुत मलाल है |कुछ लोगों ने तों अपनी शिकायत यह कर दर्ज कराई कि बिना प्रोमो प्रसारित किये इस प्रकार का टेलीकास्ट उनके मौलिक अधिकारों का सरासर उल्लंघन है |
कभी मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा था -ये दुनिया मेरे लिए बच्चों के खेलने का बागीचा है |उन्होंने ने यह बात बड़ी क्लिष्ट उर्दू में कही थी इसलिए इस का अर्थ समझने समझाने में लगभग तीन पीढ़ियाँ गुजर गयीं |वैसे भी अब जबकि देखना दिखाना अरबों रुपये का व्यवसाय बन गया है तब ग़ालिब के लिखे की सार्थकता समझ आ रही है |जिसके पास जो है वो उसी को दिखा रहा है|फैशन माडल परिधान कम अपनी देह अधिक दिखाती हैं|लेखक अपनी लेखनी का जौहर दिखाते हैं |पत्रकार अपनी कलम की धार के  पैनेपन का प्रदर्शन कुछ इस अंदाज़ में करते हैं कि ज़मीर छलनी हो जाता है और खून की एक बूँद तक नमूदार नहीं होती|इराक के एक पत्रकार ने अमरीकी राष्ट्रपति बुश की ओर जूता उछाल कर एक  महान शुरुवात की थी |सारी दुनिया को उन्होंने सन्देश दे दिया था कि पत्रकारों की कलम और कैमरे से अधिक प्रभावशाली तो जूता होता है |इस घटना के बाद तो सारा परिदृश्य ही जूतामय हो गया है |अपने देश के कम से कम तीन जांबाज़ पत्रकार तो इस कारनामे को कर चुके हैं |कांग्रेस के प्रवक्ता की प्रेस कांफ्रेंस में जब जूता दिखाने का लाइव टेलीकास्ट चल रहा था तब अनेक महिला और बच्चे तो भावावेश में ताली बजाते देखे गए |उन्हें लगा वे  किसी रियलिटी शो को देख रहे हैं |उनमे तो ऐसे दृश्य आते ही हैं |कमाल तो तब हो गया जब एक चेनल एंकर  ने तुरंत बताया कि आप देख रहे हैं -जर्नलिस्ट ,जूता और जनार्दन |इस पंच लाइन को सुनने के बाद सिने जगत के अनेक पटकथाकार हतप्रभ  रह गए|सोचने लगे कि ऐसी मौलिक प्रतिभा बुद्धू बक्से में अपना वक्त क्यों बरबाद कर रही है |
जूता दिखाने की इस ताजातरीन घटना के बाद यह बात तो पक्की हो गई कि जूता केवल पैर में पहनने की चीज नहीं हैं |केवल पैर में पहन कर तो हम जूते की उपादेयता के साथ नाइंसाफी करते रहे हैं |जूता तो जब कभी   तबियत से उछाला जाता है या पूरी सजधज से दिखाया जाता है तो वह इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो जाता है| जूता उछालने वाला इतिहासपुरुष बन कर रातों रात सेलिब्रिटी बन जाता है |
हमेशा की तरह  इस बार भी एक जर्नलिस्ट का  जूता बन गया है एक बड़ी खबर |जब तन ढांपने को कपड़े न हों ,बच्चे भूख से बिलबिलाते हों ,किसान क़र्ज़ से मुक्ति के लिए करें आत्महत्या ,महिलाओं की अस्मिता खतरे में हो ,तब कोई खबर नहीं बनती |लेकिन एक जूता हवा में उछाला जाये या दिखाया जाये तो बनती है बड़ी खबर | अब बड़ी ख़बरें ऐसे ही बनती हैं |उसके  लिए अध्ययन ,मनन ,शोध और सार्थक सोच की कोई ज़रूरत नहीं|

1 comment:

vijai Rajbali Mathur said...

एकदम हकीकत बयानी की है इस आलेख में.

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