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Saturday, July 9, 2011

वो आये भी ,चले भी गए

लोकतांत्रिक राजघराने का राजकुमार पदयात्रा पर था और पिछले तीन दिनों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मानो सोना ही भूल गया था.तमाम चेनलों के एंकर हांफते और  उत्तेजना से कांपते अपना माइक हाथ में संभाले पीछे -पीछे दौड़ लगा  रहे थे.उन्हें लग रहा था  कि वे एक ऐसी घटना के साक्षी बनने जा रहे हैं जिसका इतिहास के सुनहरे पन्नों पर दर्ज होना तय है.वे अपने को भाग्यशाली मान रहे थे कि महात्मागांधी के दांडी मार्च सारीखी घटना की पुनरावृत्ति  अपनी आँखों से देख पाएंगे.उनके भीतर की कल्पनाशीलता उफान मार रही थी.एक से बढ़कर सशक्त जुमले उनके मुख से फूलों की  तरह झड रहे थे.इस पदयात्रा की लाइव कवरेज करता एक युवा एंकर तो इतना भावविभोर हो गया कि उसकी आँखों से अश्रुधार  ही बह निकली और उसे रोता देखकर कैमरापर्सन भी अपनी सुधबुध खो बैठा.परिणामस्वरूप वह कैमरे का फोकस राहुल गाँधी पर करना भूल काफी देर तक एक भैंस के रम्भाने के दृश्य ही दिखाता रहा.लाइव कवरेज पर ऑंखें गडाए दर्शकों को लगा कि अभी आयेगी राहुल बाबा के भैंस कनेक्शन की कोई ब्रेकिंग न्यूज़.फिर टी वी  स्क्रीन पर जो न्यूज़ ब्रेक  हुई उसे देख कर दर्शकों की आँखें भर आईं.खबर थी -अभी -अभी राहुल बाबा ने गांव के एक हैण्डपम्प के पानी से अपने मुहं हाथ धोए.उनकी इस त्याग भावना की खबर पाकर महानगर के ब्यूटी पार्लर में बैठी श्रींगार करा रही अनेक महिलाएं मेकअप धुलने की परवाह किये बिना रो दीं.ऐसी भी खबर है कि राहुल गाँधी की पदयात्रा का कवरेज इतना दिलचस्प रहा कि सास बहुओं के अनेक सीरियलों की टीआरपी यकायक गिर गई.कुछ निर्माताओं का तो मानना है कि यदि यह यात्रा कुछ दिन और चलती तो उनकी लुटिया ही डूब गई होती.
राहुल गाँधी की यह पदयात्रा अचानक शुरू हुई ,जिसने सारे प्रशासनिक अमले को हैरत में डाल दिया.सारे सरकारी जासूस गोपीचंद जासूस  की तरह सर खुजाते रह गए.इस यात्रा की गोपनीयता ने बहुत से लोगों के हाथ से धन प्रशस्ति अर्जित करने गोल्डन मौका निकलवा दिया.काश चेनल वालों को इसका पता चल जाता तो वे यात्रा के प्रोमो दिखा -दिखा कर कोल्ड ड्रिंक ,बोतलबंद पानी,मच्छरमार दवा,कैम्पिंग उपकरण,एनर्जी ड्रिंक,पोर्टेबल पब्लिक एड्रेस सिस्टम,इमरजेंसी लाईट आदि के विज्ञापनों के जरिये करोड़ों की कमाई कर लेते.अनेक भावी नेताओं को भी इस गोपनीयता से कष्ट हुआ.राहुल बाबा तो आ गए पूरी तैयारी के साथ ,पर उनके तो कुर्ते पाजामे तो अभी रस्सी पर ही सूख रहे थे.बिना कलफ लगा  और बिना प्रेस का कुरता पजामा वो कैसे पहन सकते थे.बिना अस्त्र शस्त्र के सैनिक का कोई महत्व नहीं होता इसी प्रकार बिना कड़क कलफ लगे सफेद पाजामे कुर्ते के अभाव में भला कोई नेता होता है.
 राहुल गाँधी की पदयात्रा तीन दिन चलती रही.गांव -गांव ,गली -गली ,घर -घर उत्सव का माहौल रहा.जिसके द्वारे वह ठहरे वो रातों -रात सेलिब्रिटी बन गया.उसके घर का कोना -कोना पूरे देश ने देखा.उसके घर के मिटटी के चूल्हे पर पकती अरहर की दाल और रोटिओं को ज़माने ने बड़ी हसरत से निहारा.वो आये हमारे दर पर,पल दो पल ठहरे,हँसे बतियाये और चले गए.अब तो कुछ झूठे सच्चे किस्सों के साथ इन गांवों की भोली भाली जनता को वैसे ही जीना है ,जैसे वे हमेशा  जीते आये हैं.

3 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

सही बात कही है सर.

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कल 12/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सटीक और सार्थक बात .. यही होता है ...

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत सही कहा है....

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