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Tuesday, July 26, 2011

मुंशी प्रेमचंद तो कालजयी हैं{३१ जुलाई को उनके जन्म दिन पर }


         मुंशी प्रेमचंद यदि आज जीवित होते तो उनकी आयु १३१ वर्ष होती.इस दुनिया से उन्हें विदा है लगभग ७५ वर्ष हो गए हैं .तमाम नए विचारों और साहित्य में अपनाई जाने वाली तकनीक और शिल्प के बावजूद उनकी साहित्य में जीवंत उपस्थिति को अभी भी अनुभव किया जाता है .कहानी विधा पर कोई भी सार्थक चर्चा उनकी लिखी कहानियों के उल्लेख के बिना संभव नहीं है.उन्होंने अपने कृतित्व से साहित्य पर ऐसी अमिट छाप छोड़ी जो आगामी अतीत के लिए विरासत और धरोहर बन गई.उनके लिखे ने जनमानस को इस तरह प्रभावित किया कि उनकी लिखी कुछ कहानियां तो किवदंती बन गईं.रामलीला ,दो बैलों की कथा ,गुल्ली डंडा ,लाटरी और बड़े भाई साहब जैसी कहनियों को भला कौन भुला सकता है.
उनका लिखा दिमाग पर कम और दिल पर अधिक असर छोड़ता है.इसकी वजह ये है कि अपनी कहानियों में न तो उन्होनें असाधारण संसार को रचने की कोई कोशिश की न, किसी विशिष्ट पात्र को लेकर वह  उपस्थित हुए.उन्होंने सर्वपरिचित माहौल के बीच से कहानियों को उठाया और सर्वसाधारण पात्रों के जरिये इतनी सहजता से अपनी बात कह दी कि पढ़ने वाले ये सोच कर हैरत में पड़ जाते कि लेखक को मेरे घर परिवार के किस्से का पता कैसे लगा .उनके पास किस्सागोई की वो कला थी जो पाठक को अपने तिलस्म में  बांध लेती थी.उनकी  कहानियों में न तो भारीभरकम शब्दावली है न विचारों का अनावश्यक बोझ .वह कहीं अपने पांडित्य का कोई दिखावा भी नहीं करते .उनका जीवन अभावों से भरा होने के बावजूद भी एकदम सहज और सरल था .उन्होंने अपने लेखक होने की आड़ में अपने पारिवारिक दायित्वों से बचने की कभी कोशिश नहीं की.एक जिम्मेदार पिता ,एक सजग संपादक और विजनरी लेखक की भूमिका का निर्वाह पूरी शिद्दत से किया.वह गरीबी में भी रहे पर उससे उबरने के लिए कभी कोई ऐसा समझोता नहीं किया जो उनकी सामाजिक समझ के विपरीत हो और  महज़ स्वार्थ से प्रेरित हो.वह ग़ुरबत से उबरने के लिए संघर्षरत रहे पर उन्होंने कभी दरिद्रता को महिमा मंडित करने की कोशिश नहीं की.
वह निरंतर अपनी जमीन और जड़ों से जुड़े रहे और यही कारण है कि वह कफ़न और शतरंज के खिलाड़ी जैसी कालजयी कहानियों को रच सके.शतरंज के खिलाड़ी कहानी में जिस प्रकार उन्होंने समाज की तत्कालीन परिस्थितियों और राजनीतिक गफलत पर टिप्पड़ी की है ,उससे पता लगता है कि उन्हें कथा सम्राट क्यों कहा जाता है.ऐसी कालजयी कहानियां वही रच सकता है जो अपने समय और उसके  इतिहास और भविष्य से गहरे तक जुड़ा होता है .मानना होगा कि जिस प्रकार विभाजन की विभीषिका पर मंटो ही थे जो टोबा टेक सिंह कहानी रच सकते थे उसी प्रकार प्रेम चंद के पास ही वो सटीक कथा दृष्टि थी कि जिसके चलते उन्होंने शतरंज के खिलाड़ी जैसी अदभुत कहानी लिखी.उनकी इस कहानी का अब तक दुनिया की हर भाषा में अनुवाद हो चुका है और प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सत्यजीत राय ने इस पर बेजोड फिल्म भी बनाई'
कुछ हलकों से लगातार ये बहस  चलाई जाती रही है कि क्या प्रेम चंद बदलते जीवन मूल्यों के बीच आज भी प्रसंगिक हैं.इसका सीधा जवाब ये है कि जब तक मूल  मानवीय वृतियों में कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं आ जाता ,हमारे हँसने, रोने ,उदास होने और एक दूसरे के दुखों में सहभागिता के नैसर्गिक गुण जब तक नष्ट नहीं हो जाते तब तक मुंशी प्रेमचंद की उपस्थिति को एक दिव्य सुगंध की तरह महसूस किया जाता रहेगा.

1 comment:

vijai Rajbali Mathur said...

प्रेम चंद जी पर आपके विचार अच्छे हैं ।

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