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Wednesday, July 27, 2011

एक हुआ करता था सर्कस


यह ज्यादा पुरानी कहानी नहीं है .केवल दो - तीन दशक पुरानी  बात है.एक सर्कस हुआ करता था,जो घूम -घूम कर सारे मुल्क में अपने खेल दिखाया करता था .सारे में उसकी धूम थी.सर्कस मालिक की खूब मौज थी और सर्कस कलाकारों के भी दिन मस्ती में बीत रहे थे.हर कलाकार अपने -अपने खेल में पारंगत था.जोकर भी ऐसे थे जो जब रिंग में आते तो दर्शकों के पेट हँसते -हँसते फूल जाते.जोकरों का उस सर्कस में विशेष स्थान था ,उन्हें सर्कस की कामयाबी के लिए आवश्यक माना जाता था.केवल इतना ही नहीं वे जोकर मालिकों के बड़े मुह लगे थे.उनका काम अपनी हरकतों के जरिये तमाशबीनों को आनंदित करना तो था ही ,साथ ही साथ वे अपने साथी कलाकारों की मुखबरी मालिक से करते रहने का गुरुतर दायित्व भी उनके झुके हुए कन्धों पर रहता था.वे समय -असमय मालिकों के शिविर में आते -जाते रहते और हंसी -हंसी में मालिकों को सारी गोपनीय जानकारी दे आते.बदले में मालिक उन्हें कभी -कभी इनाम इकराम से नवाज़ दिया करते.
यह वह समय था जब सर्कस में अनेक जानवर भी हुआ करते थे .एक से बढ़ कर एक खूंखार जानवर -लेकिन थे वे विशुद्ध कलाकार.उनको ऐसा सधाया गया था कि रिंग में आकर वे देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देते थे.शेर और चीते के एक रिंग मास्टर बिजली का हंटर लिए रिंग में आता था.रिंग मास्टर के हल्के से इशारे पर जंगल का राजा किसी निरीह बच्चे की तरह वह सब करने लगता जो करने को उनका रिंग मास्टर करता.उनके करतब पर खूब तालियाँ बजतीं और रिंग मास्टर उसका सारा श्रेय खुद ले लेता .उसने शेर चीतों को हैरतअंगेज़ करतब करने तो सिखाए थे ,पर अपने किये पर होने वाली तारीफ का लुत्फ़ लेना नहीं.उन्हें मालूम था कि यदि सभी कुछ इन जंगली जानवरों को सिखा दिया तो फिर मालिकों की निगाह में उनकी कद्र ही क्या रह जायेगी.रिंगमास्टर खाली समय में से कुछ समय तो हंटर का भय दिखा -दिखा कर जानवरों को सधाता था और इससे बचे हुए समय में अवसर मिल जाने पर मालिकों को बताया करता था कि यह तो वो ही है जो इन खूंखार आदमखोरों को काबू में किये है वरना ये तो कभी भी किसी पर भी हमलावर हो सकते हैं.वह चाहता था कि मालिक उसकी अहमियत को नज़रंदाज़ ना करें.वैसे तो सर्कस में और भी कलाकार पशु पक्षी थे मसलन दो पैरों पर नाचने वाला हाथी,डिस्को की धुन पर ठुमकने वाला घोडा,पियानो बजाने वाला झबरे बाल वाला सफ़ेद कुत्ता,अपने पंजे को रंग में डुबो कर केनवास पर पेंटिंग बनाने में माहिर गधा ,छोटी सी तोप दाग कर सबको चौंका देने वाला हरियल तोता,मालिक की प्रशस्ति का हरदम गान करने वाली मैना.मैना जब गाती थी तो सर्कस के हर कलाकार के लिए  ताली पीटना अनिवार्य था .इस काम से किसी कलाकार को कोई परहेज़ भी नहीं था ,केवल रिंगमास्टर और छत पर लगे झूलों पर कूदान भरने वाले और मौत के कुँए में बाईक दौड़ाने वाले को ये काम अपनी शान के खिलाफ लगता था .
सब कुछ ठीक -ठाक चल रहा था कि तभी एक हादसा हो गया.सर्कस में जानवरों के इस्तेमाल के खिलाफ आवाज़ उठने लगी.जगह -जगह सर्कस के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे.भीड़ ने सर्कस के पंडाल में आग लगाने की भी कोशिश की.सब डर गए कि अब क्या होगा ?जोकरों ने अनेक लतीफे सुनाकर मालिकों को हंसाने की नाकाम कोशिश की.वे समझ गए कि उनके दिन पूरे हुए और वे एक चूरन बेचने वाली कम्पनी के मुलाजिम हो गए.वे करतब दिखाते और हंसी -हंसी में अपना चूरन बेच लेते.रिंग मास्टर और झूले वाले कलाकार ने कुछ दिन जीदारी दिखाई ,मालिक को भरोसा देते रहे सब ठीक हो जायेगा.पर जब कुछ न हुआ उन्होंने तोते का पिंजरा खोल उसे उड़ा दिया ,पेंटिंग बनाने वाले गधे को उसके हाल पर खुला छोड़ दिया ,कुत्ता भी नए रोजगार की तलाश में कहीं निकल गया.रिंगमास्टर शेर चीते हाथी को जंगल में छोड़ने गया तो वापिस नहीं लौटा.
बाद में पता लगा कि झूलेवाले कलाकार ने एक क्षेत्रीय दल बना लिया है और बहती हवा के साथ वे कूदान भरता रहता है.तोप चलाने वाला तोता वीररस का कवि बनकर अपनी रटंत से विस्फोट पर विस्फोट  किया करता है.गधा खाड़ी के देश में जा बसा है और उसकी पेंटिग्स की बाज़ार में भारी मांग है.मौत के कुँए में गाड़ी दौड़ाने वाला रेलगाड़ी में चालक हो गया है .पहले वह दिल्ली में ब्लूलाइन बस चलाता था.पियानो बजाने वाले झबरीले बालों वाले  कुत्ते के घर के बाहर उसे पुरस्कार देने वालों की कतार लगी रहती है..अलबत्ता मैना अभी भी मालिकों के साथ है.
किस्सा तो काफी लंबा है ,लेकिन इतना बताना काफी है कि यदि एक बड़े नेता ने यह न कहा होता कि उनकी रजनीतिक पार्टी एक सर्कस है तो यह भूली -बिसरी कहानी कभी याद भी न आती.उसी पार्टी के एक नेता का कहना है कि हो न हो यह सर्कस का वो ही  जोकर है जो कभी मालिकों का पार्ट टाइम मुखबिर हुआ करता था.अब उसे फुलटाइम वही काम चाहिए.नहीं मिला तो मुह फुलाए बैठे हैं.                                                          

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