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Wednesday, November 30, 2011

अदम गोंडवी बीमार हैं
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दुष्यंत के बाद हिंदी के बहुचर्चित गज़लकार श्री अदम गोंडवी यानी रामनाथ सिंह की हालत नाजुक है. अदम साहब को गोंडा के आर्यन पांडेय हास्‍पीटल में भर्ती कराया गया है. दो महीने से बीमार अदम गोंडवी लम्‍बे इलाज के बाद कुछ समय पहले ही अस्‍पताल से घर आए थे. अब एक बार फिर उन्‍हें अस्‍पताल में भर्ती होना पड़ा है. उनका लीवर डैमेज कर गया है. डाक्‍टरों की टीम उनका इलाज कर रही है. उनके तमाम चाहने वाले शुभचिंतक अस्‍पताल में मौजूद हैं.

22 अक्‍टूबर 1947 को कर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंडा) के आटा ग्राम में स्व. श्रीमती मांडवी सिंह एवं श्री देवी कलि सिंह के पुत्र के रूप में रामनाथ सिंह का जन्‍म हुआ है. अदम गोंडवी के नाम से सुविख्‍यात हुए रामनाथ सिंह ने हिंदी गजल को अलग पहचान दी.

अदम गोंडवी
मुशायरों में घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मटमैला कुरता और गले में सफ़ेद गमछा डाले जब अदम साहब गंवई अंदाज में पहुंचते थे तो लोग बहुत ध्‍यान नहीं देते थे, पर जब यह निपट गंवई इंसान चमकीली गजल-कविता सुनाता तो लोग हैरान रह जाते थे. धरती की सहत पर, समय से मुठभेड़ अदम साहब की प्रमुख रचनाएं हैं. पिछली बार बीमारी के दौरान यूपी के पूर्व मुख्‍यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने भी अदम साहब का हालचाल जाना था.

अदम साहब के भतीजे दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि अभी भी उनकी हालत नाजुक बनी हुई है. डाक्‍टर अल्‍ट्रासाउंड समेत तमाम जांच कर रहे हैं. अभी उनकी हालत गंभीर बनी हुई है. कुछ कहा नहीं जा सकता है. वे पिछले दो महीने से बीमार थे पर कल से हालत ज्‍यादा बिगड़ गई है. उन्‍होंने बताया कि तमाम लोग उनका हालचाल जानना चाह रहे हैं. गौरतलब है कि अदम साहब ने अपनी गजलों और कविताओं से आम आदमी के दिलों में अपनी पहचान बनाई है. नीचे उनकी कुछ गजलें.

एक

जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में

बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गयी
राम सुधि की झौपड़ी सरपंच की चौपाल में

खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हम को पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में

दो

ग़र चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे

जायस से वो हिन्दी की दरिया जो बह के आई
मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे ?

जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे ?

तारीख़ बताती है तुम भी तो लुटेरे हो
क्या द्रविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे ?

तीन

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये

हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये

ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं ; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये

हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब ,क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये

छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये

चार

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है

उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है

लगी है होड़ - सी देखो अमीरी औ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है

तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी
bhadas4media से साभार

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