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Saturday, January 14, 2012

एक बोरिंग फिल्म का मध्यान्तर

देशज मुहावरे में कहा जाये तो मेरे शहर में भी पूरे प्रदेश के साथ चुनावी रणसिंघा बज गया है |सारे राजनीतिक दल अपने जंग खाए भोथरे हथियारों को अपनी मध्ययुगीन सोच के सान पर रगड़ -रगड़ कर चमकाने और धारदार बनाने में लगे हैं |इस बार भी किसी दल के पास जनता के लिए न कोई नए वादे हैं ,न किसी प्रकार का कोई नया आशावाद और न कोई नया सेनापति या सिपाही |यदि कहीं कुछ बदला है तो सिर्फ कुछ नाम या मुखौटे, पर इनका चाल ,चेहरा और चरित्र प्रागैतिहासिक ही है |राजनीतिक शतरंज की बिसात पर तमाम पिटे हुए मोहरे हैं ,जिनके सामने एक लक्ष्यविहीन ऊब है |इनमें से कुछ अपने हाथों में चकमक पत्थर लिए अपनी तरल महत्वकांक्षाओं से बोझिल उम्मीदों के एक बार फिर देदीप्यमान होने का ख्वाब संजोये हैं और अधिकांश तो अभी तक अपने अतीत की वृहद पराजय गाथाओं के सफ़े ही उलटपुलट रहे हैं|इस बीच एक महत्वपूर्ण ज़रूर घटना यह हुई कि बहुत से प्यादों के रातों -रात दुम उग आई हैं ,जिसे वे अपने राजनीतिक आकाओं के आगे खूब हिला -हिला कर अपनी स्वामिभक्ति का सार्वजानिक प्रदर्शन कर चुनावी वैतरणी पार कर जाने के सपने संजोये हैं |अपनी उम्मीदवारी तय हो जाने तक प्रतिस्पर्धा इस बात को सिद्ध करने में है कि किसकी दुम अन्य उम्मीदवारों के मुकाबले कितनी अधिक झबरीली और लचीली है |फिलहाल तो टिकिटार्थियों ने अपनी –अपनी रीढ़ की हड्डियां निकाल कर अपने आलाकमान के समक्ष उनके क़दमों में रख दी हैं ताकि सनद रहे और वक्त –ज़रूरत भी किसी काम की न रहे |
भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के असमय स्वर्ग सिधार जाने के बाद चुनावी दंगल लगभग फ्री -स्टाइल शैली में लड़ा जाना तय हो चुका है |प्रदेश का विकास तो न पहले कभी कोई मुद्दा था न इस बार ही उसका कोई ज़िक्र किसी दल के एजेंडे में है |बस चुनाव आयोग ही है जो किसी मिडिल स्कूल के खुर्राट हेडमास्टर की भूमिका में सभी की आँख की किरकिरी बना हुआ है |मेरठ निवासी प्रसिद्ध कहानीकार लाडली मोहन की एक भूलीबिसरी कहानी में शहर के किसी गली मोहल्ले के दुकानदार लाला का उल्लेख है जो अपने तराजू के ज़रिये घटतौली करके मुनाफा कमाने को अपना वाणिक धर्म और प्रेमातुर युवाओं के समागम में अड़चन बनने को अपना नैतिक कर्तव्य मानता है |कमोबेश चुनाव आयोग की भूमिका भी ऐसी ही है |वह अपनी नैतिकता की परिभाषा का नृशंस डंडा लिए कभी भी कहीं भी उपस्थित हो जाता है |इसी कारण सारे राजनीतिक वातावरण में अजीब -सा रोमांच है |वरना तो इस शहर के हालात भी वही हो जाते जैसे किसी जौइंट -फैमिली में सास-ससुर के अनायास तीर्थ यात्रा पर चले जाने के बाद हो जाया करते हैं |बहुएं उच्श्रंखल हो जाती हैं और बेटे,पोते- पोती सभी निर्द्वंद|सास-माँ हमारी घर नहीं ,हमें किसी का डर नहीं|
एक समय ऐसा भी था जब चुनावी आहट मिलते ही सारा शहर उत्सव में तल्लीन हो जाता था |जहाँ देखो रंग ही रंग बिखर जाते थे |रंगबिरंगे बैनरों और पोस्टरों से सारा वातावरण किसी मौर्डन आर्टिस्ट की विशालकाय कलावीथिका में तब्दील हो जाता था |शहर की कोई दीवार नारों तस्वीरों से बिना लिपेपुते बच नहीं पाती थी |कागज की बहुरंगी झंडियों से सारा शहर कुछ ऐसे आच्छादित हो जाता कि आसमान का वास्तविक रंग और दिन है या रात क्या है ,यह जानने के लिए घंटों माथापच्ची करनी पड़ती थी |शायद यह लतीफा तभी गढा गया होगा कि एक सज्जन ट्रेन से प्लेटफार्म पर उतरे तो उन्होंने वहाँ खड़े एक आदमी से पूछा -भाई ,समय क्या हुआ है |उस आदमी ने अपनी कलाई में बंधी घड़ी को देखा और बता दिया -आठ बजे हैं |सज्जन ने पूछा -सुबह के आठ या रात के |आदमी ने जवाब दिया -मुझे क्या पता |मैं तो खुद परदेसी हूँ |ये सारे रंग इतिहास के स्याह पन्नों के हिस्सा बन चुके हैं अब तो |शेषन नामक एक चुनाव आयुक्त का राष्ट्रीय पटल पर प्रादुर्भाव क्या हुआ और सारे रंग भक्क से यूं उड़ गए जैसे किसी बने -बनाये चित्र पर कोई शैतान बच्चा थिनर या इंक रिमूवर उड़ेल दे|चुनावी माहौल में बेनूर दरो-दीवारों को देख कर इस शहर और बेरोजगार हुए छापेखाने वालों तथा पेंटरों को अपनी बेखुदी में बड़बडाते हुए रात के सन्नाटे में अभी भी सुना जा सकता है |
मेरे शहर में इन चुनावों के ज़रिये कुछ नहीं होने वाला |यहाँ की सड़कों के गड्ढे न पहले कभी कम हुए थे ,न कभी होंगे |बिजली की आँख मिचौनी का खेल बदस्तूर जारी रहेगा |बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला नहीं मिलने वाला |ट्रेफिक जाम से निजात नहीं मिलने वाली |बाहुबलियों के आतंक में लेश मात्र भी कमी नहीं आयेगी |आवश्यक वस्तुओं के दाम नहीं घटने वाले |साम्प्रदयिक और जातिगत विद्वेष यथावत रहेगा |सड़कों और अपने घरों में न पहले आम आदमी सुरक्षित था ,न वह आगे रहेगा |यदि आप किसी बड़े बदलाव का कोई सपना पाल बैठे हैं तो मैं बता दूं कि हमेशा की तरह इस सपने का भी चकनाचूर होना ही इसकी नियति है |यह चुनाव बतकही में निपुण लोगों के लिए अवसर लेकर ज़रूर आया है |इस चुनावी मौके का आप क्या और कैसा इस्तेमाल करेंगे ,ये आप जानें |मेरे लिए तो यह समय किसी निहायत बोरिंग फिल्म के बीच आया एक ऐसा मध्यांतर है ,जिसमें मैं कुछ पापकार्न उदरस्थ कर और ठंडा पानी अपने गले के नीचे उतार कर लंबी-लंबी सांसें लेने की कोशिश करूँगा ताकि फिल्म का शेष भाग देख सकने की हिम्मत मेरे भीतर बनी रहे |

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