मैं देखता हूँ खवाब
और सोचता हूँ
इन ख्वाबों को
छूपा कर रखूँ
अपनी पलकों की ओट में
मैं नहीं चाहता
कोई देख सके
मेरे इन ख्वाबों को
और हैरान हो
किक यह आदमी
देख लेता है
ऐसे -ऐसे खवाब भी .
1 comment:
nice poem
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