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Sunday, August 1, 2010

बाघखोर आदमी .....

जंगल सिमटते जा रहे हैं
घटती जा रही है
विडालवंशिओं की जनसंख्या
भौतिकता की निरापद मचानों पर
आसीन लोग
कर रहे हैं स्यापा
छाती पीट -पीट कर
हाय बाघ;हाय बाघ.

हे बाघ !तुम्हारे यूं मार दिए जाने पर
दुखी तो हम भी हैं
लेकिन उन वानवासिओं का क्या
जिनका कभी आदमखोर बाघ
तो कभी बाघखोर आदमी के हाथ
बेमौत मारा जाना तय है .

7 comments:

Ashish (Ashu) said...

बहुत सटीक!! सुन्दर!!

मेरे भाव said...

लेकिन उन वानवासिओं का क्या
जिनका कभी आदमखोर बाघ
तो कभी बाघखोर आदमी के हाथ
बेमौत मारा जाना तय है . ....sachchai ko ujagar karti behtareen rachna... shubhkamna....

अरुण चन्द्र रॉय said...

बाघखोर आदमी के जरिये आपने देश की आधी से अधिक जनसँख्या की समस्या को गहराई से छुआ है. आज कमनीय बालाएं केवल अधोवस्त्र पहनकर बाघ को बचने की मुहीम में जुटी हैं लेकिन देश में बाघ कहाँ पाए जाते हैं उन्हें नहीं पता.. शहर को नहीं पता की गाँव जंगल पत्थर और पठार क्या होते हैं.. उनके लिए नीतियां नोर्थ ब्लाक के वातानुकूलित कमरों में तय की जाती हैं.. ए़क तिहाई देश जो लाल झंडे के दहशत में है.. वह चिंता भी इस कविता में झलक रही है.. बहुत ही गंभीर कविता !

Parul kanani said...

behad umda rachna!

हरकीरत ' हीर' said...

लेकिन उन वानवासिओं का क्या
जिनका कभी आदमखोर बाघ
तो कभी बाघखोर आदमी के हाथ
बेमौत मारा जाना तय है .

बहुत खूब ....!!

Rajiv said...

"लेकिन उन वानवासिओं का क्या
जिनका कभी आदमखोर बाघ
तो कभी बाघखोर आदमी के हाथ
बेमौत मारा जाना तय है."
Nirmal jee shayad pahali bar aapke blog par aaya hun.par jeevan ke prati jo sarokar dikhkai diya hai yahn,wah man ko aandolit kar jata hai.samvedana se ot-prot rachana.

Rajiv said...

"लेकिन उन वानवासिओं का क्या
जिनका कभी आदमखोर बाघ
तो कभी बाघखोर आदमी के हाथ
बेमौत मारा जाना तय है."
Nirmal jee shayad pahali bar aapke blog par aaya hun.par jeevan ke prati jo sarokar dikhkai diya hai yahn,wah man ko aandolit kar jata hai.samvedana se ot-prot rachana.

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