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Saturday, March 3, 2012

एक पीठासीन अधिकारी की डायरी



खौफनाक आशंकाओं के बीच जैसे- तैसे रात बीती और  मुझे मेरे  मोबाइल के आलार्म  ने अत्यंत कर्कश ध्वनि में  सूचना दी कि सुबह के चार बज गए हैं |कायदे से तो यह ब्रह्म मुहूर्त है पर मेरे लिए मतदान की प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के गुरुतर दायित्व से भरी  एक ऐसी छद्म सुबह का  आगाज़ है ,जिसके लिए हम सभी को समय के साथ दौड़ लगाते हुए अगले डेढ़ घंटे के भीतर अपने दैनिक कर्मों से निवृत्त हो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को उसके संवैधानिक दायित्व के लिए न केवल तैयार ही करना है वरन उसके जरिये मौक ड्रिल उसी तरह  करवानी है जैसी  डाक्टरी सलाह के बाद किसी बीमार से उसके परिवार वाले जबरन  करवाते हैं   |इसमें हमें हर हालात में घड़ी की सुइओं के साथ कदमताल करनी है |यही वह समय होता है जब सरकारी मानसिकता की घड़ियाँ भी ग्रीनविच मीनटाइम के साथ –साथ खुदबखुद चलने लगती  हैं |
हमारे जबड़े भिंचे हुए हैं और रीढ़ की हड्डी में एक अजीब –सा खिंचाव है |सब मौन हैं लेकिन इस निस्तब्धता के बीच हमारे दिलों की धडकनों को कोई भी बिना डाक्टरी आले (स्टेथिस्कोप) के सुन  सकता है |हमारे साथ  मतदान केन्द्र की सुरक्षा के लिए आये अर्धसैनिकबल के जवान अपनी वर्दी पहन कर मुस्तैद हो गए हैं ,उन्होंने अपने रात वाले मानवीय चेहरों को सिर पर बंधे काले  मुडासे और कांधे पर टंगी स्वचालित रायफल की  आड़ में कहीं छुपा कर रख दिया है |लोकतंत्र के ये  अनाम प्रहरी देश की सीमा हो या किसी मतदान केन्द्र की सुरक्षा कभी कोई कोताही नहीं करते |मैंने मन ही मन इनकी कर्तव्य भावना का प्रणाम किया तो लगा कि अब हनुमान चालीसा के जरिये अपनी रक्षा के लिए बजरंगबली को कम से कम आज तो याद करने की कतई ज़रूरत नहीं है |आज तो बजरंगबली के पास और भी महत्वपूर्ण काम होंगे,मसलन आसन्न पराजय से भयाक्रांत प्रत्याशियों को दिलासा देना|  हमने तो  चुनावी महाप्रभु (जिसे लोग चुनाव आयोग के नाम से भी जानते और खौफ खाते हैं )  के निर्देशों के मन्त्रों को याद रखा और उन्हें ही मन ही मन दोहराते रहे |
वोटिंग मशीन से व्यायाम करवाने और प्रत्याशियों का भाग्य कैद करने के लिए उसे सीलबंद करने के बाद हमारे शहरी मनों  को बेड टी की याद आई तो मैंने बड़ी आस के साथ बूथ के बाहर झाँका तो भाप उड़ाती चाय की प्याली लिए कोई खूबसूरत हाथ तो  कहीं नहीं दृष्टिगोचर नहीं हुआ  अलबत्ता अपने हाथों में अपना वोटर पहचान पत्र और मतदान पर्ची लिए उत्साह से लबरेज़ मतदाताओं के फूले हुए नथुनों से उष्णकटिबंधीय हवाओं का ज़रूर अनुभव हुआ और चाय की उत्कंठा हवा हो गई| हम लोग अपने –अपने  स्थानों पर आ डटे और मैं रात को मतदान केन्द्र पर ठन्डे फर्श पर सोने के लिए लेटे रहने के कारण अपनी पीठ में हो रहे बेतरह दर्द के बावजूद बेहद कमज़ोर काया वाली एक अधबुनी  कुर्सी पर पीठासीन हो गया |तभी सुबह के सात बजे और वोटिंग मशीन के मुहँ से पीं-पीं की ध्वनि और हम मतदान कर्मियों के निराहार  श्रीमुखों से निशब्द सिसकारी  की जुगलबंदी शुरू हो गई |ये सिलसिला अगले दस घंटों तक इसी प्रकार चलना है ,यह कमोबेश हम  सभी को पता था |
मतदान चलता रहा और मैं अपने कमर दर्द और खाली पेट में हो रही चूहों की चुहलबाजी को नज़रंदाज़ करके एक फर्ज़ी मुस्कान को अपने होठों से ज़बरन चिपकाये अपनी पीठ पर आसीन रहा |तब मुझे अपने शहर की बड़ी याद आई ,जहाँ मेरे जैसे कुछ पीठासीन अपने काम में लगे होंगे और जनता मतदान के समस्त पुराने रिकार्डों को ध्वस्त करने की ज़ल्दी में होगी |मेरे शहर के लोगों लिए चाहे जैसा और जिसका भी हो , कोई  रिकार्ड हो या फिर  किसी का दिल ,तोड़ना मनपसंद शगल रहा है |चुनावी दंगल में तो जनता हर पांच साल में एक बार अनेक प्रत्याशियों की आस तोडती है और चुनावी जंग में विजय पताका फहराने वाला अपने पूरे कार्यकाल में  जन आकांक्षाओं का  जी भर के मखौल उड़ाता  है |परपीड़ा में आनंद (सैडिस्टिक प्लेज़र) का यह खेल हर पांच साल बाद यूं ही दोहराया जाता रहा  है |
मैं प्रत्येक दो घंटे के अंतराल पर बिना किसी प्रत्युत्तर या कम्प्यूटरजनित धन्यवाद के चुनाव आयोग को मतदान का ताजातरीन हाल एसएमएस भेजता  –भिजवाता रहा  | अंततः शाम के पांच बजे प्रत्याशियों की  चुनाव कुंडली के फलित से भरी वोटिंग मशीन को बंदरिया के बच्चे की तरह सीने से चिपकाये चुनाव से सम्बंधित कागजात का पिटारा तथा अपना साजोसामान लेकर हम  मतदान केन्द्र से बाहर आये तो पता लगा अपने गंतव्य तक पहुँचने की ज़ल्दी में हमें जिला मुख्यालय ले जाने वाला वाहन कूच कर गया है |हम थके पिटे भूख से बेहाल लोगों के लिए ये एक खतरनाक खबर थी |इसकी सूचना सभी आला अधिकारियों को दी पर सब बेकार |उनसे झूठे दिलासों के अलावा कुछ नहीं मिला |तब यह सत्य हमारे समक्ष उद्घाटित हुआ कि चुनाव महाप्रभु के लंबे हाथ स्थानीय स्तर पर कभी –कभी कितने अशक्त हो जाया करते  हैं |आखिरकार हमारे साथ तैनात सीमा के सजग प्रहरियों का स्वविवेक और पुलिसिया रौब काम आया और हम एक अन्य वाहन से मुख्यालय पहुंचे |मुझे यकीन हो गया कि जब वैधानिक अधिकारी निष्प्रभावी हो जाते हैं तब पुलिस की  अवैधानिक कार्यशैली कारगर रहती  है |
हमारी विपदाओं का उस दिन कोई अंत तय ही नहीं था |मुख्यालय पर वोटिंग मशीन और अन्य प्रपत्र ज़मा करने में लगे लोगों के पास हमें दुत्कारने और सताने की एक सुनिश्चित योजना थी |उन्होंने हमें  प्रपत्रों के नाम पर ऐसी वर्गपहेली सुलझाने को थमा दी ,जिसे हल करने में हम सभी घंटों  जूझते रहे | जैसे तैसे मुक्त हुए तो कैलेंडर पर चुपके से अगला दिन अपनी आमद दर्ज़ करवा चुका था |
यह एक पीठासीन अधिकारी की उस डायरी का मूल पाठ है ,जिसे तमाम तर्क –वितर्क और प्रयासों के बावजूद मैं अधिकारिक प्रपत्रों के साथ जमा करवाने में नाकामयाब रहा |जो पीठासीन की डायरी मेरे द्वारा ज़मा की गई है उसमें तो लिखा है –मतदान नियमानुसार शांतिपूर्वक संपन्न हुआ |सरकारी रिकार्ड में निजी दुःख तकलीफों और भावनाओं का ब्यौरा कभी रखा भी नहीं जाता |
निर्मल गुप्त ,मोब .8171522922













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