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Sunday, April 29, 2012

पांडेजी इतने नाराज़ क्यों हैं ?


 

आजकल पांडेजी बहुत परेशान हैं |वह सरकारी मुलाजिम हैं फिर भी परेशान हैं |आमतौर से सरकारी महकमों में काम करने वाले कम ही परेशान हुआ करते हैं |उनका तो मुख्य काम होता है हर उस शख्स को हैरान परेशान करना जो उनके पास अपनी कोई काम या  दरख्वास्त लेकर आये |वह जनता की हर चाहत को लालफीतों में इस तरह बांधते और जकड़ते  कि उसमें से अपनी  रोटियों पर चुपड़ने लायक कुछ न कुछ शुद्धघी निकाल ही लेते  |उन्होंने जनता से प्राप्त इतना माल जीमा कि वह फूल के ऐसे कुप्पा हुए कि लोग उन्हें देखते और कहते ,भागो रे----- ये तो बम का गोला है, कभी भी कहीं भी फट सकता है |डाक्टरों ने साफ़ –साफ़ कह दिया –पांडेजी यूं बैठे बैठे गपागप  माल न उड़ाया  करें अन्यथा आपकी  बत्ती हो जायेगी गुल और बीबी पायेगी पेंशन फुल |इस डाक्टरी ताकीद को सुनकर पांडेजी बेचैन हो गए और उन्हें जब कुछ न सूझा तो प्राप्त होने वाली घूस में से दसवंद(आय का दसवां हिस्सा ) बाबाजी को पूर्ण भक्ति भाव से भिजवाने लगे |
इसके बाद हुआ यह कि उन्हें लगा सब कुछ ठीकठाक चल रहा है |वैसे भी मेरे शहर में चमत्कारी  बाबाओं  की किरपा बरसती ही  रहती  है |कृपा किसी बाबा की हो या लोकल दादा की एक ही बात है |उनकी तोंद का घेरा और उनकी आमदनी में लगातार विस्तार होता गया |पांडेजी खुश ,अफसर प्रसन्न ,पंडिताइन गदगद ,बच्चे आह्लादित ,हर ओर हंसी खुशी का संचार ,बस जनता ही थी जो कुपित थी |पर उससे क्या, बाबा की किरपा है तो कोई उनका क्या उखाड़ लेगा |पर तभी उनकी इस चैन भरी जिंदगी को किसी की नज़र लग गई |आरटीआई नाम के खलनायक ने अपनी आमद दर्ज़ कराई और देखते ही देखते सब कुछ बदल गया |अब जिसे देखो अपने हाथ में सूचना के अधिकार की मिसाईल लिए खड़ा है |जरा चूक हुई नहीं कि दागी गई मिसाईल |अग्नि-5 मिसाईल की तरह इसका निशाना चूकने की कोई गुंजाईश नहीं |ऐसे में पांडेजी समझ ही नहीं पा रहे कि वह क्या करें ?अपना सरकारी काम करें या अपनी तोंद को लक्ष्य बना कर छोड़ी जा रही  मिसाईलों  से बचें |जो काम तमाम डाक्टरी तकीदें न कर पाई थीं वो काम इस आरटीआई ने कर दिखाया |उनका बैंक बैलेंस रीतने लगा तो तोंद की परिधि भी उसी अनुपात में स्वत: घटने लगी |पंडिताइन को बात –बात पर गुस्सा आने लगा और घर में अरसे से पसरी खुशी किसी आवारा लड़की की तरह फरार हो गई |
                                 पांडेजी परेशान हैं तो उनके विरोधियों की खुशी की कोई सीमा नहीं |एक का कुछ खोता है तो दूसरे को मिलता है |द्रव्य की अविनाशिता का यही नियम है और जिंदगी भी इसी नियम से चलती है |पांडेजी का  वो पटल जिसपर निरंतर लक्ष्मी बरसती थी उसपर अब तरह –तरह के सवाल आर टी आई के तहत आने लगे हैं |कोई पूछ रहा है कि उनका वास्तविक वेतन और ऊपरी क़माई का योग क्या  है तो कोई उनकी रक्त में प्रवाहित शर्करा की मात्रा और उनके द्वारा अर्जित की गयी संपत्ति के मध्य  दुराभिसंधि के समीकरण को पूछ रहा है |किसी को यह जानना है कि उनके घर में पलनेवाला पामेरियन ,जो आयतित आहार खाता है ,उस पर होने वाले व्यय के बाद उनके वेतन खाते में बचता क्या है |उनके द्वारा पहने जाने वाली ऐनक का सुनहरा फ्रेम,ब्लेकबेरी का मोबाईल फोन ,एडिडास  के जूते  ,ब्रांडेड कमीज़ से लेकर उनके अंडरवियर तक  सभी सवालों के घेरे में है | उन तमाम दवाईयों के बिल भी  ,जिसमें डाइबिटीज के साथ सेक्स वर्धक कैप्सूल भी होते हैं , जिसे वे नियमित रूप से लेते हैं |लाब्बेलुबाब यह है ,ऐसा कुछ बचा नहीं जिसके बारे में पूछा न गया हो |यह  नामुराद आरटीआई  ढीठ पीपिंग टॉम बन गया है-दूसरों की निजी जिंदगी में जबरन ताका झांकी करने पर अमादा |इसने सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों का जीना ही मुहाल कर दिया है |
                             कभी कभी पांडेजी जब देर रात अपना  गम गलत करके घर आते हैं और उनका किशोरवय बेटा दरवाज़ा खोलता है तो वह उसके हाथ को गौर से देखते हैं कि कहीं उसके हाथ में भी कोई जहर बुझा  सवाल तो नहीं |यदि एकदिन उसने पूछ लिया - आपने किस नियम या उपनियम  के तहत मुझे जन्म दिया |उस नियम की प्रति उपलब्ध कराएँ जिसके तहत आपको डैडी,पापा या पिताजी कहना बाध्यकारी हो ,तब वह क्या करेंगे|

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